White भागती दौड़ती जिंदगी, हर रोज नई एक जंग,
याद आता है घर का चूल्हा, शहर कर रहा है ये तंग।
लिखना को था बहुत कुछ, पर शब्द पड़ गए हैं कम,
लक्ष्य भी है दूर बहुत, और थोड़ा थक गए हैं हम।
जिंदगी की दौड़ रोज सी, यूँ ही भागी है,
जिंदगी के आगे सपनों ने जिंदगी त्यागी है।
कहने को हम आजाद है लेकिन, जिम्मेदारियाँ हजार है,
अपने से ज्यादा क्योंकि, हमें अपनों से प्यार है।
कहते हैं लोग बहुत कि ऐसे जीता है कौन,
हँसता चेहरा रोती आँखें, लेकिन सदा रहती है मौन।
पुरानी सोच वाले हम, ना जिंदगी अपनों से प्यारी है,
लड़ते - चलते जीवन की ये जंग यूँ ही जारी है।।
©Sagar Parasher
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