लेखनी लेखनी जब चलती है मन की बात निकलती है बढ़ता म | हिंदी कविता

"लेखनी लेखनी जब चलती है मन की बात निकलती है बढ़ता महत्व कागज का जब स्वछंद टहलती है कोई कहता वाह वाह मगर किसी को छलती है कभी शांति है बाँटती कभी आग उगलती है बेखुद अगर ठान लेती सब बाधाएँ टलती हैं ©Sunil Kumar Maurya Bekhud"

 लेखनी
लेखनी जब चलती है
मन की बात निकलती है
बढ़ता महत्व कागज का
जब स्वछंद टहलती है
कोई कहता वाह वाह
मगर किसी को छलती है
कभी शांति है बाँटती
कभी आग उगलती है
बेखुद अगर ठान लेती
सब बाधाएँ टलती हैं

©Sunil Kumar Maurya Bekhud

लेखनी लेखनी जब चलती है मन की बात निकलती है बढ़ता महत्व कागज का जब स्वछंद टहलती है कोई कहता वाह वाह मगर किसी को छलती है कभी शांति है बाँटती कभी आग उगलती है बेखुद अगर ठान लेती सब बाधाएँ टलती हैं ©Sunil Kumar Maurya Bekhud

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