ram lalla कौशल्या ने प्रेम का बीज उगाया
उस बीज को प्रेम में पा गई सीता
छोड़ के वैभव महल अटारी
प्रीत की रीत निभा गई सीता
यज्ञ की ज्वाला से राम भये
बरखा बन धारा हर्षा गयी सीता
शिवधनु तोड़ने वाले के उर मे
न टूटे वो गाँठ लगा गई सीता
रघुपति ने रघुकुल का रीत निभाया
सात फेरों के वचन निभा गई सीता
बारह बरस नैना अश्रु बहा के
बिरहा के त्रास को पा गई सीता
एक मृग की ललक बनी हिय की तड़प
क्यो लक्ष्मण की रेखा भूला गई सीता
सागर पति को हृदय में बसा के
यू सागर के उस पार आ गई सीता
©Chitra Gupta
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