White वो शक़्स मुझसे किनारा करके। चला गया किसी और | हिंदी Poetry

"White वो शक़्स मुझसे किनारा करके। चला गया किसी और का सहारा करके। उसने भी सोचा भला बुरा मेरे बारे, हम भी पछताए इश्क़ दोबारा करके। न उसने समझा न वो समझ पाता, की तो थी हमने कोशिश इशारा करके। मेरा शुक्रिया तो बनता है मेरे रक़ीब, जा रही हूँ मेरे शक़्स को तुम्हारा करके। बेहतर तो था अपनी बेकली को जानते, खुश हैं अब नुक़सान हमारा करके। अब न मुझे मैं दिखती हूँ न मेरे आँसू, सब बड़िया है घर में अंधियारा करके। सवालों जवाबों में उलझी पड़ी थी कबसे, सुलझ गई नीयति नसीब गवारा करके। कब बसना भाया है शायरों को निशा, मुक़म्मल रहते है ख़ुद को आवारा करके। ©Ritu Nisha"

 White वो शक़्स मुझसे किनारा करके। 
चला गया किसी और का सहारा करके। 

उसने भी सोचा भला बुरा मेरे बारे, 
हम भी पछताए इश्क़ दोबारा करके। 

न उसने समझा न वो समझ पाता, 
की तो थी हमने कोशिश इशारा करके। 

मेरा शुक्रिया तो बनता है मेरे रक़ीब, 
जा रही हूँ मेरे शक़्स को तुम्हारा करके। 

बेहतर तो था अपनी बेकली को जानते, 
खुश हैं अब नुक़सान हमारा करके। 

अब न मुझे मैं दिखती हूँ न मेरे आँसू, 
सब बड़िया है घर में अंधियारा करके। 

सवालों जवाबों में उलझी पड़ी थी कबसे, 
सुलझ गई नीयति नसीब गवारा करके। 

कब बसना भाया है शायरों को निशा, 
मुक़म्मल रहते है ख़ुद को आवारा करके।

©Ritu Nisha

White वो शक़्स मुझसे किनारा करके। चला गया किसी और का सहारा करके। उसने भी सोचा भला बुरा मेरे बारे, हम भी पछताए इश्क़ दोबारा करके। न उसने समझा न वो समझ पाता, की तो थी हमने कोशिश इशारा करके। मेरा शुक्रिया तो बनता है मेरे रक़ीब, जा रही हूँ मेरे शक़्स को तुम्हारा करके। बेहतर तो था अपनी बेकली को जानते, खुश हैं अब नुक़सान हमारा करके। अब न मुझे मैं दिखती हूँ न मेरे आँसू, सब बड़िया है घर में अंधियारा करके। सवालों जवाबों में उलझी पड़ी थी कबसे, सुलझ गई नीयति नसीब गवारा करके। कब बसना भाया है शायरों को निशा, मुक़म्मल रहते है ख़ुद को आवारा करके। ©Ritu Nisha

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