चाहता हूं सीखू कोई ऐसा मंतर
मिट जाए तेरे मेरे बीच का अंतर
प्रेम की आगोश में सिमटे ऐसे जैसे
नदियां सिमटती समंदर के अंदर
मन सबका बेपरवाह है
काटी सभी ने नफरत की सजा है
वक्त की चाल में,
धारासाई होते तमाम धुरंधर
क्यूं आंकना,खुद को
किसी से ऊंच या कमतर
चाहता हूं सीखू कोई ऐसा मंतर
मिट जाए तेरे मेरे बीच का अंतर
©Rajesh Yadav
#peace