मेरी चित्रकारी कुछ ऐसा रंग लाये
कि तस्वीर बनाऊं तुम्हारी
और तू तस्वीर से निकल आये
कि पेंसिल से बनाऊं लकीरें तुम्हारी
और तकदीरे मेरी तुमसे जुड़ जाये
कि बनाऊं मैं घर तुम्हारा
और मेरे घर के रास्ते
तुम्हारी तरफ मुड़ जाये
एक झूला बनाऊं उसपर तुम्हें बिठाऊं
और पास बैठकर मैं तुम्हारे
कन्धों पर अपना सिर टिकाऊं
काश मुझपर खुदा की
कुछ ऐसी रहमत हो जाये
कि मैं जो भी बनाऊं वो सच हो जाये
मेरी चित्रकारी कुछ ऐसा रंग लाये.
©Garima Srivastava
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