White सपनों की उड़ान-हिंदी कहानी (भाग 61) में आपका | हिंदी फ़िल्म

"White सपनों की उड़ान-हिंदी कहानी (भाग 61) में आपका स्वागत है! दोनों हंस आंसुओं की सागर में तैरने लगा!जो भी जमा पूंजी था धीरे-धीरे खत्म हो गया! अंत में सहारा देने वाला दीपक बेसहारा छोड़ कर हमेशा के लिए बुझ गया!  अंधेरे में विषाद दिन प्रतिदिन अपना विकराल रूप दिखाता रहा! नंदू सीखा के दुखों को समेटने में इतना व्यस्त हो गया, कि वह भूल गया कि मैं किसी कंपनी का एक मामूली सा नौकर हूं! हर एक सप्ताह में चार दिन छुट्टी ही रहता था!  किसी भी कंपनी को आपके दुख, समस्या ,आर्थिक कमजोरी, इन सब विषयों पर चिंतन करने से क्या फायदा!उसे तो सिर्फ अपना लाभ हानि से मतलब है! अंततोगत्वा नंदू को कंपनी से बर्खास्त कर दिया गया! शिखा की आस जो नंदू पर टिकी थी, वह भी अब धुंधला नजर आने लगा!एक रोटी के लिए भी घंटों सोचना पड़ता था! किसी दिन रोटी नसीब होता तो किसी दिन वह भी नहीं! अंत में नंदू को अपना घर मां और पिताजी की याद आई! एक कहावत है-- चिड़िया चाहे उड़े आकाश,फिर करे धरती की आस!शिखा को साथ ले कर नंदू अपने गांव के लिए रवाना हुआ ©writer Ramu kumar"

 White सपनों की उड़ान-हिंदी कहानी (भाग 61) में आपका स्वागत है!

दोनों हंस आंसुओं की सागर में तैरने लगा!जो भी जमा पूंजी था धीरे-धीरे खत्म हो गया! अंत में सहारा देने वाला दीपक बेसहारा छोड़ कर हमेशा के लिए बुझ गया!  अंधेरे में विषाद दिन प्रतिदिन अपना विकराल रूप दिखाता रहा! नंदू सीखा के दुखों को समेटने में इतना व्यस्त हो गया, कि वह भूल गया कि मैं किसी कंपनी का एक मामूली सा नौकर हूं! हर एक सप्ताह में चार दिन छुट्टी ही रहता था! 

किसी भी कंपनी को आपके दुख, समस्या ,आर्थिक कमजोरी, इन सब विषयों पर चिंतन करने से क्या फायदा!उसे तो सिर्फ अपना लाभ हानि से मतलब है! अंततोगत्वा नंदू को कंपनी से बर्खास्त कर दिया गया! शिखा की आस जो नंदू पर टिकी थी, वह भी अब धुंधला नजर आने लगा!एक रोटी के लिए भी घंटों सोचना पड़ता था! किसी दिन रोटी नसीब होता तो किसी दिन वह भी नहीं!

अंत में नंदू को अपना घर मां और पिताजी की याद आई!

एक कहावत है-- चिड़िया चाहे उड़े आकाश,फिर करे धरती की आस!शिखा को साथ ले कर नंदू अपने गांव के लिए रवाना हुआ

©writer Ramu kumar

White सपनों की उड़ान-हिंदी कहानी (भाग 61) में आपका स्वागत है! दोनों हंस आंसुओं की सागर में तैरने लगा!जो भी जमा पूंजी था धीरे-धीरे खत्म हो गया! अंत में सहारा देने वाला दीपक बेसहारा छोड़ कर हमेशा के लिए बुझ गया!  अंधेरे में विषाद दिन प्रतिदिन अपना विकराल रूप दिखाता रहा! नंदू सीखा के दुखों को समेटने में इतना व्यस्त हो गया, कि वह भूल गया कि मैं किसी कंपनी का एक मामूली सा नौकर हूं! हर एक सप्ताह में चार दिन छुट्टी ही रहता था!  किसी भी कंपनी को आपके दुख, समस्या ,आर्थिक कमजोरी, इन सब विषयों पर चिंतन करने से क्या फायदा!उसे तो सिर्फ अपना लाभ हानि से मतलब है! अंततोगत्वा नंदू को कंपनी से बर्खास्त कर दिया गया! शिखा की आस जो नंदू पर टिकी थी, वह भी अब धुंधला नजर आने लगा!एक रोटी के लिए भी घंटों सोचना पड़ता था! किसी दिन रोटी नसीब होता तो किसी दिन वह भी नहीं! अंत में नंदू को अपना घर मां और पिताजी की याद आई! एक कहावत है-- चिड़िया चाहे उड़े आकाश,फिर करे धरती की आस!शिखा को साथ ले कर नंदू अपने गांव के लिए रवाना हुआ ©writer Ramu kumar

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