पेटभर मिठाईया खाने की तमन्ना किसे है टुकडा चखना जर | हिंदी कविता

"पेटभर मिठाईया खाने की तमन्ना किसे है टुकडा चखना जरा सा काफी है मेरे लिए मंजिल तक सफर करना कौन चाहता है दो कदम उसकी ओर बढाना काफी है मेरे लिए भरजरी कपड़ों की आंस कौन रखता है बस आबरू सलामत रहे काफी है मेरे लिए मशहूर कौन बनना चाहता है इस बदनाम दुनिया में वजूद मेरा बेदखल ना हो इतना काफी है मेरे लिए तारीफ के पूल क्यूं बांधे कोई मेरे शब्द पढकर पढकर मन ही मन मुस्कराए कोई काफी है मेरे लिए हसरत जिंदगी भर के हमसफर की किसे है दुर जाते जाते इक नजर देखे कोई काफी है मेरे लिए ©Vivek. . . . . ."

 पेटभर मिठाईया खाने की तमन्ना किसे है
टुकडा चखना जरा सा काफी है मेरे लिए

मंजिल तक सफर करना कौन चाहता है
 दो कदम उसकी ओर बढाना काफी है मेरे लिए

भरजरी कपड़ों की आंस कौन रखता है
बस आबरू सलामत रहे काफी है मेरे लिए

मशहूर कौन बनना चाहता है इस बदनाम दुनिया में
वजूद मेरा बेदखल ना हो इतना काफी है मेरे लिए

तारीफ के पूल क्यूं बांधे कोई मेरे शब्द पढकर
पढकर मन ही मन मुस्कराए कोई  काफी है मेरे लिए

हसरत जिंदगी भर के हमसफर की किसे है
दुर जाते जाते  इक नजर देखे कोई काफी है मेरे लिए

©Vivek. . . . . .

पेटभर मिठाईया खाने की तमन्ना किसे है टुकडा चखना जरा सा काफी है मेरे लिए मंजिल तक सफर करना कौन चाहता है दो कदम उसकी ओर बढाना काफी है मेरे लिए भरजरी कपड़ों की आंस कौन रखता है बस आबरू सलामत रहे काफी है मेरे लिए मशहूर कौन बनना चाहता है इस बदनाम दुनिया में वजूद मेरा बेदखल ना हो इतना काफी है मेरे लिए तारीफ के पूल क्यूं बांधे कोई मेरे शब्द पढकर पढकर मन ही मन मुस्कराए कोई काफी है मेरे लिए हसरत जिंदगी भर के हमसफर की किसे है दुर जाते जाते इक नजर देखे कोई काफी है मेरे लिए ©Vivek. . . . . .

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