एहसास और जज़्बात संभाल कर रखो,
हर दिल में सच्चाई का पैमाना हो, ये ज़रूरी नहीं।
कभी लफ्ज़ों के पीछे भी अफसाना छुपा होता है कहीं,
हर मुस्कान में वफ़ा का खज़ाना हो, ये ज़रूरी नहीं।
रिश्तों की इस भीड़ में खुद को खोने मत देना,
हर कदम पर सही साथी का होना ज़रूरी नहीं।
कभी साया भी उजालों का साथ छोड़ देता है,
अपना, हमेशा अपना ही रह पाए, ये ज़रूरी नहीं।
©नवनीत ठाकुर
#एहसास और जज़्बात संभाल कर रखो,
हर दिल में सच्चाई का पैमाना हो, ये ज़रूरी नहीं।
कभी लफ्ज़ों के पीछे भी अफसाना छुपा होता है कहीं,
हर मुस्कान में वफ़ा का खज़ाना हो, ये ज़रूरी नहीं।
रिश्तों की इस भीड़ में खुद को खोने मत देना,
हर कदम पर सही साथी का होना ज़रूरी नहीं।
कभी साया भी उजालों का साथ छोड़ देता है,