लोग कह रहें कि शहर की हवाओं
में ज़हर घुल रहा है।
मुझे इसका इल्म नहीं।
मैं तो महसूस कर रही हूँ कि
मेरी धड़कनों में,मेरी रगों में
मेरी सांसों में तो तुम घुल रहे हो।
महसूस कर रही हं,
धुंधला रहा है मेरा वजूद धीरे-धीरे।
महबूब की नज़र-ए-इनायत का असर
कुछ इस तरह हुआ कि मैं अब मैं नहीं
तुम हो गई हूं।
कुछ मुख्तलिफ सी हो गई हूं मैं
शहर में ये सरगोशियां अब आम हो गई हैं।
©Dr Archana
#myhappiness