तू,तेरा गुरुर और तेरी शागिर्दगी,हर कुछ जायज है
तू ना हो साथ तो मेरी हर ख्वाहिशें नाजायज हैं...
खुदा ने तराशा तेरे नक्श को,खुद को
आईने के सामने रख कर...
संवारा तेरी सीरत को भी अपनी सारी खूबियां निकाल कर...
लगे न तुझे काफिरों कि नजर,उसका भी इंतजाम कर डाला,
तेरे श्वेत सलोने चेहरे पर कारे मोतियों सा तिल दे डाला...
तब भी न जाने क्यूं खुदा को तुझ में
कुछ ऐब नजर आया,
फिर तेरे ओजश्वी चेहरे को माधुर्य मुस्कान से सजाया...
तुझे जमी पर भेजते हुए उसे फिर कुछ याद आया,
तेरी निगाहों में फिर से करुणा के भावों को भी पिरोया...
तब जाकर खुदा को कुछ संतोष हुआ,
तुझे जमीं पर भेज उसने फिर हम पर भी सात जन्मों का
एहसान कर डाला...
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