दर्द देकर हाल पूछते हो ,
क्या तुम इतने बेदर्द हो ।
चिराग जला दिल में , तुम ही उसे बुझाते हो,
क्या तुम भी इस जहां में इतने खुदगर्ज हो ।
यूं रोज ख्वाबों में आ कर तन्हाइयों को बढ़ाते हो,
क्या तुम भी यूं तड़फा तड़फा कर सुकून पाते हो ।
खामोशियां भली जिंदगी की,क्यों राज तुम उगलाते हो,
तुम होकर यूं गैर ,ये कैसा अपनापन हम से जताते हो ।
©Dayal "दीप, Goswami..