a-person-standing-on-a-beach-at-sunset हम परस्थितियों से समझौता करते हैं
कभी रोकर इच्छाओ को मार कर
भावनाएं सीमित हो जाती है
हस कर सारे सपने समाप्त कर देते है
जो मिला उसे हम
चाहे अनचाहे स्वीकार कर लेते हैं
जो नहीं मिलता उसकी हम
बात करना नहीं चाहते
क्यों की हम समझौता करना
सिख जाते हैं
चाहने से हर चीज नहीं मिलती
कुछ चीजें जिंदगी भर अधूरी
रह जाती है
आंखों की भी अपनी भाषा होती है
हम खुद से लड़ते रहते हैं
अंत में प्रकृति हमें अकेले रहना
सिखा जाती है
क्यूंकि आशु भी स्वाभिमानी होते हैं
©शीतल श्रेष्ठ
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