कैसे मारूं मैं एक रावण
रावण तो हैं कई हजार।
हर घर रावण हर में रावण
रावण के हैं कई प्रकार ।
रावण रावण करते हो राम
अब कहॉं है शेष।
लाख बुराई करने पर भी
रावण था व्यक्ति विशेष।
असत्य पर सत्य की विजय
अब है सिर्फ़ स्मृति शेष।
हर घड़ी फहरा रही विजय
पताका असत्य के द्वार।
अस्त हो गया सूरज सत्य का
खुल गए हैं कलयुग के द्वार।
आओ मिलकर जलाएं रावण
हम अपने अन्तर्मन् का।
मिल फहराएं फिर से लाएं
समय फिर से सतयुग का।।
Herpreet Singh
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