एक अल्हड़ सा लड़का था में जिन दिनों,
एक मेले में गया था हमकता हुआ,
जी मचलता था एक-एक चीज पर मगर,
मोल दे न सका किसी चीज का,
आज भी लगता है मेला उसी शान से,
अब चाहूँ तो एक-एक दुकान मोल लूँ,
अब चाहूँ तो सारा जहां मोल लूँ,
मगर अब दिल में बचपन कहाँ,
और मैं अब वो छोटा सा अल्हड़ लड़का कहाँ..!!
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