इन दिनों कुछ शब्द है जो गूंज रहे है देश में
असल में चुभ रहे है भविष्य के कानों में
मॉब लिंचिंग से मौत और दंगे,अब हैरान नहीं करते
खौंफ जगाते हैं बहुतों को अपने आज और कल के होने में
कभी संभल तो कभी अजमेर, मणिपुर का तो अभी जिक्र भी नहीं
आग की लपटें, चारों और धुआं ही धुआं और पथराव
ये तस्वीरे हर रोज की खबर है, जिसे मैं देखना नहीं चाहता
मैं भविष्य आज खड़ा हूं इस असीम शोर-नहीं-बवाल में
शिमला कितना ठंडा है... फिर उसमें ऊबाल क्यों
कुछ तो गलत है शायद सही सुझाव सोच से परे है
क्या किसी को शांति पसंद नहीं जिस पर अमल हो
क्या कोई सुलगती आग को बुझाना नहीं चाहता
मैं भविष्य, ऐसा भविष्य बिल्कुल नहीं चाहता
वक्त रहते इसका अंत हो, समस्या का निदान हो
ये सूरज की लालिमा का रंग सूरज से ही निकले तो अच्छा है
धरती से सूरज को जाएगा तो सब कुछ जलना ही है
मुझे तो कल में जीना है और ज्वलंत लपटें चुभ रही है
मैं भविष्य, ऐसा भविष्य बिल्कुल नहीं चाहता
क्या कोई सुलगती आग को बुझाना नहीं जानता।।
-C2
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©C2
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