तेरे शहर को मैं जी भर निहारा तुझे न निहारा तो क्य | हिंदी कविता

"तेरे शहर को मैं जी भर निहारा तुझे न निहारा तो क्या ही निहारा बहकता हू मै देख तेरा इसारा क्या तू भी समझती है मेरा इशारा अगर हां। तो कुछ यूं बता देना पलके उठाना फिर झुका लेना झुकाते ही पलके तुम मुस्कुरा देना बालों को कानो में दो बार सवार देना तुम देखना तो मैं समझ जाऊंगा हा ज्यादा देर नहीं मै बहक जाऊंगा।। ©Vimal Gupta"

 तेरे शहर को मैं जी भर निहारा 
तुझे न निहारा तो क्या ही निहारा 
बहकता हू मै देख तेरा इसारा
क्या तू भी समझती है मेरा इशारा 
अगर हां। तो कुछ यूं बता देना 
पलके उठाना फिर झुका लेना 
झुकाते ही पलके तुम मुस्कुरा देना
 बालों को कानो में दो बार सवार देना
तुम देखना तो मैं समझ जाऊंगा
हा ज्यादा देर नहीं मै बहक जाऊंगा।।

©Vimal Gupta

तेरे शहर को मैं जी भर निहारा तुझे न निहारा तो क्या ही निहारा बहकता हू मै देख तेरा इसारा क्या तू भी समझती है मेरा इशारा अगर हां। तो कुछ यूं बता देना पलके उठाना फिर झुका लेना झुकाते ही पलके तुम मुस्कुरा देना बालों को कानो में दो बार सवार देना तुम देखना तो मैं समझ जाऊंगा हा ज्यादा देर नहीं मै बहक जाऊंगा।। ©Vimal Gupta

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