सुनो कभी तुम्हारे प्रिय ने तुम्हारे मुख की अपेक्षा | हिंदी विचार

"सुनो कभी तुम्हारे प्रिय ने तुम्हारे मुख की अपेक्षा तुम्हारे सपनों की तुलना चमकते हुए चाँद से की? सुनो हमेशा तुमने ही अपने प्रिय को जाना या वह भी तुम्हें कितना समझ सका है, ये प्रश्न अबतक खड़ा है साथ तुम्हारे? सुनो कभी तुमने प्रिय को रिझाकर स्वयं पर आश्रित करने की अपेक्षा उसके अपने व्यक्तित्व संग नित चलायमान होने की अभिलाषा की? सुनो कभी तुमने अपने प्रिय के गुणों की अपेक्षा उसके अवगुणों को भी उसी अपनत्व के साथ स्वीकारा? सुनो कभी तुम्हारे प्रिय ने संग तुम्हारे कुल्हड़ भरी चाय पीते हुए देश के बुनियादी मुद्दों पर चर्चा की? सुनो कभी तुमने अपने प्रिय को बड़े उपहारों की अपेक्षा एक छोटा-सा रुमाल भेंट करना चाहा जिसपर काढ़ा हो स्वयं तुमने एक किनारे पर छोटा-सा नाम उसका? सुनो कभी तुमने अपने प्रिय को व्हाट्सएप्प/फेसबुक की लास्ट-सीन में देखने की अपेक्षा हृदय के अंतस्तल में नित स्थिर और चलायमान होते पाया? ऐसे ढेरों प्रश्न जो तुमने कभी अपने प्रिय से और उसने तुमसे क्यों नहीं पूछा ये जानने को सोचा? सुनो तुमने........ ©शिवानी त्रिपाठी"

 सुनो कभी तुम्हारे प्रिय ने तुम्हारे मुख की अपेक्षा तुम्हारे सपनों की तुलना चमकते हुए चाँद से की?
सुनो हमेशा तुमने ही अपने प्रिय को जाना या वह  भी 
तुम्हें कितना समझ सका है,
ये प्रश्न अबतक खड़ा है साथ तुम्हारे?
सुनो कभी तुमने प्रिय को रिझाकर स्वयं पर आश्रित करने की अपेक्षा
उसके  अपने व्यक्तित्व संग नित चलायमान होने की अभिलाषा की?
सुनो कभी तुमने अपने प्रिय के गुणों की अपेक्षा उसके अवगुणों को
भी उसी अपनत्व के साथ स्वीकारा?
सुनो कभी तुम्हारे प्रिय ने संग तुम्हारे कुल्हड़ भरी चाय पीते हुए
देश के बुनियादी मुद्दों पर चर्चा की?
सुनो कभी तुमने अपने प्रिय को बड़े उपहारों की अपेक्षा
एक छोटा-सा रुमाल भेंट करना चाहा
जिसपर काढ़ा हो स्वयं तुमने 
एक किनारे पर छोटा-सा नाम उसका?
सुनो कभी तुमने अपने प्रिय को व्हाट्सएप्प/फेसबुक की लास्ट-सीन
में देखने की अपेक्षा हृदय के अंतस्तल में
नित स्थिर और चलायमान होते पाया?
ऐसे ढेरों प्रश्न जो तुमने कभी अपने प्रिय से और उसने तुमसे
 क्यों नहीं पूछा
ये जानने को सोचा?
सुनो तुमने........

©शिवानी त्रिपाठी

सुनो कभी तुम्हारे प्रिय ने तुम्हारे मुख की अपेक्षा तुम्हारे सपनों की तुलना चमकते हुए चाँद से की? सुनो हमेशा तुमने ही अपने प्रिय को जाना या वह भी तुम्हें कितना समझ सका है, ये प्रश्न अबतक खड़ा है साथ तुम्हारे? सुनो कभी तुमने प्रिय को रिझाकर स्वयं पर आश्रित करने की अपेक्षा उसके अपने व्यक्तित्व संग नित चलायमान होने की अभिलाषा की? सुनो कभी तुमने अपने प्रिय के गुणों की अपेक्षा उसके अवगुणों को भी उसी अपनत्व के साथ स्वीकारा? सुनो कभी तुम्हारे प्रिय ने संग तुम्हारे कुल्हड़ भरी चाय पीते हुए देश के बुनियादी मुद्दों पर चर्चा की? सुनो कभी तुमने अपने प्रिय को बड़े उपहारों की अपेक्षा एक छोटा-सा रुमाल भेंट करना चाहा जिसपर काढ़ा हो स्वयं तुमने एक किनारे पर छोटा-सा नाम उसका? सुनो कभी तुमने अपने प्रिय को व्हाट्सएप्प/फेसबुक की लास्ट-सीन में देखने की अपेक्षा हृदय के अंतस्तल में नित स्थिर और चलायमान होते पाया? ऐसे ढेरों प्रश्न जो तुमने कभी अपने प्रिय से और उसने तुमसे क्यों नहीं पूछा ये जानने को सोचा? सुनो तुमने........ ©शिवानी त्रिपाठी

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