तेरे हाथ से मेरे हाथ तक, वो जो हाथ भर का था फ़ासला | हिंदी Shayari

"तेरे हाथ से मेरे हाथ तक, वो जो हाथ भर का था फ़ासला, कई मौसमों में बदल गया । उसे नापते, उसे काटते मेरा सारा वक़्त निकल गया । ये जो रेग-ए-दश्त-ए-फ़िराक़ है, ये रुके अगर तो पता चले , कि ये जो फ़ासलों की सलीब है,ये गड़ी हुई है कहाॅं-कहाॅं । #not mine #bas yunhi ....... ©Sh@kila Niy@z"

 तेरे हाथ से मेरे हाथ तक, वो जो हाथ भर का था फ़ासला,
कई मौसमों में बदल गया ।
उसे नापते, उसे काटते मेरा सारा वक़्त निकल गया ।
ये जो रेग-ए-दश्त-ए-फ़िराक़ है, ये रुके अगर तो पता चले ,
कि ये जो फ़ासलों की सलीब है,ये गड़ी हुई है कहाॅं-कहाॅं ।

#not mine 
#bas yunhi .......

©Sh@kila Niy@z

तेरे हाथ से मेरे हाथ तक, वो जो हाथ भर का था फ़ासला, कई मौसमों में बदल गया । उसे नापते, उसे काटते मेरा सारा वक़्त निकल गया । ये जो रेग-ए-दश्त-ए-फ़िराक़ है, ये रुके अगर तो पता चले , कि ये जो फ़ासलों की सलीब है,ये गड़ी हुई है कहाॅं-कहाॅं । #not mine #bas yunhi ....... ©Sh@kila Niy@z

#basekkhayaal #basyunhi
#nojotohindi
#Quotes
#26november
#DesertWalk

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