यादों के समुंदर में एक कतरा इतना खास बना बैठा, जित

"यादों के समुंदर में एक कतरा इतना खास बना बैठा, जितना दूर रहना था उससे, उतना उसके पास जा बैठा, और कोशिश की थी मैंने कि मैं खुद को तुझसे दूर रखूं, जितना रोका खुद को, उतना तुझको अपना सा बना बैठा, और मैं गलत हूं मुझे पता है, तू सही है मुझे यकीन है, मगर ये दिल है ये तो फिर से वही गलती दोहरा बैठा, तू उगता सूरज है तेरा लिए नया सवेरा है, कुबूल कर, मैं ढलती शाम सा डूबना तो मैं नसीब में लिखा बैठा, और शुक्रिया मुझ भटके को मंजिल तक पहुंचाने के लिए, तुझसे मिलने पर मैं सफर को अपना साथी बना बैठा, और कभी पीछे मूड कर अपनी आँखे नम ना करना, कहीं तुझे अपने सफर का साथी कोई और बना बैठा, खुश रह तू आबाद रहे, चाहा तेरी राहो में कलिया सजाना, ना जाने कब तेरे लियो कांटो का बाग बिछ बैठा, की यादों के समुंदर में एक कतरा इतना खास बना बैठा, जितना दूर रहना था उसे उतना उसके पास जा बैठा... ---(GUSTAKHI MAAF) ©someone special"

 यादों के समुंदर में एक कतरा इतना खास बना बैठा,
जितना दूर रहना था उससे, उतना उसके पास जा बैठा,
और कोशिश की थी मैंने कि मैं खुद को तुझसे दूर रखूं, 
जितना रोका खुद को, उतना तुझको अपना सा बना बैठा, 
और मैं गलत हूं मुझे पता है, तू सही है मुझे यकीन है,
मगर ये दिल है ये तो फिर से वही गलती दोहरा बैठा,
तू उगता सूरज है तेरा लिए नया सवेरा है, कुबूल कर, 
मैं ढलती शाम सा डूबना तो मैं नसीब में लिखा बैठा,
और शुक्रिया मुझ भटके को मंजिल तक पहुंचाने के लिए,
तुझसे मिलने पर मैं सफर को अपना साथी बना बैठा,
और कभी पीछे मूड कर अपनी आँखे नम ना करना,
कहीं तुझे अपने सफर का साथी कोई और बना बैठा,
खुश रह तू आबाद रहे, चाहा तेरी राहो में कलिया सजाना,
ना जाने कब तेरे लियो कांटो का बाग बिछ बैठा,
की यादों के समुंदर में एक कतरा इतना खास बना बैठा, 
जितना दूर रहना था उसे उतना उसके पास जा बैठा...
---(GUSTAKHI MAAF)

©someone special

यादों के समुंदर में एक कतरा इतना खास बना बैठा, जितना दूर रहना था उससे, उतना उसके पास जा बैठा, और कोशिश की थी मैंने कि मैं खुद को तुझसे दूर रखूं, जितना रोका खुद को, उतना तुझको अपना सा बना बैठा, और मैं गलत हूं मुझे पता है, तू सही है मुझे यकीन है, मगर ये दिल है ये तो फिर से वही गलती दोहरा बैठा, तू उगता सूरज है तेरा लिए नया सवेरा है, कुबूल कर, मैं ढलती शाम सा डूबना तो मैं नसीब में लिखा बैठा, और शुक्रिया मुझ भटके को मंजिल तक पहुंचाने के लिए, तुझसे मिलने पर मैं सफर को अपना साथी बना बैठा, और कभी पीछे मूड कर अपनी आँखे नम ना करना, कहीं तुझे अपने सफर का साथी कोई और बना बैठा, खुश रह तू आबाद रहे, चाहा तेरी राहो में कलिया सजाना, ना जाने कब तेरे लियो कांटो का बाग बिछ बैठा, की यादों के समुंदर में एक कतरा इतना खास बना बैठा, जितना दूर रहना था उसे उतना उसके पास जा बैठा... ---(GUSTAKHI MAAF) ©someone special

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