पल्लव की डायरी
ठहाको के बीच,लूट गया हूँ मै
किराये की भीड़ से थक गया हूँ
जनमत सारा सड़को पर
वोटो का जखीरा उसे मिल गया है
मास्टरस्ट्रोक सुन सुन कर
इंजेक्शन बेहोशी का लग गया है
नसीब कहूँ या रजामंदी सियासतों की
कचूमर आम जनता का निकल गया है
कितना फला लोकतंत्र, सबक बता रहा है
लूट सियासतों की,कानून से जनता को डरा रहा है
मजाक और हँसी सब संसदों में
जनता की मांग को रेवडियां बता रहा है
अस्सी करोड़ गरीबो को फ्री राशन
फिर भी विकास का झुनझुना बजा रहा है
जालिम सियासतों की हँसी पर
सारा जनमानस डर और भय खा रहा है
प्रवीण जैन पल्लव
©Praveen Jain "पल्लव"
ठहाकों के बीच लुट गया हूँ में