पल्लव की डायरी हर युग मे चलन व्यवस्था का बदला है क | हिंदी कविता

"पल्लव की डायरी हर युग मे चलन व्यवस्था का बदला है कभी समाजिक व्यवस्था का चलन कभी पंचायते न्याय करती थी राजा रजवाड़े सब आये और गये मगर नैतिकता मूल रूप से सर्वोपरि रहती थी अब लोकतंत्र और संसदीय परम्परा है प्रतिनिधि सब जनता के होते है नीयत और सेवा का भाव हो तो कोई भी व्यवस्था सफल हो सकती है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव""

 पल्लव की डायरी
हर युग मे चलन व्यवस्था का बदला है
कभी समाजिक व्यवस्था का चलन
कभी पंचायते न्याय करती थी
राजा रजवाड़े सब आये और गये
मगर नैतिकता मूल रूप से सर्वोपरि रहती थी
अब लोकतंत्र और संसदीय परम्परा है
प्रतिनिधि सब जनता के होते है
नीयत और सेवा का भाव हो तो
कोई भी व्यवस्था सफल हो सकती है
                                      प्रवीण जैन पल्लव

©Praveen Jain "पल्लव"

पल्लव की डायरी हर युग मे चलन व्यवस्था का बदला है कभी समाजिक व्यवस्था का चलन कभी पंचायते न्याय करती थी राजा रजवाड़े सब आये और गये मगर नैतिकता मूल रूप से सर्वोपरि रहती थी अब लोकतंत्र और संसदीय परम्परा है प्रतिनिधि सब जनता के होते है नीयत और सेवा का भाव हो तो कोई भी व्यवस्था सफल हो सकती है प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव"

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