संजोती है जो घर को एक नया आकार देती है। लुटाती है | हिंदी Poetry
"संजोती है जो घर को एक नया आकार देती है।
लुटाती है जो ममता, स्नेह सबको प्यार देती है।।
चलाती है जो कुल को नित समर्पण, त्याग,तप करके।
उस कन्या को दुनिया भ्रूण में ही मार देती है।।
पलक यादव 'प्रेरणा'"
संजोती है जो घर को एक नया आकार देती है।
लुटाती है जो ममता, स्नेह सबको प्यार देती है।।
चलाती है जो कुल को नित समर्पण, त्याग,तप करके।
उस कन्या को दुनिया भ्रूण में ही मार देती है।।
पलक यादव 'प्रेरणा'