रक्त कणों से लिखी गई अविस्मरणीय कहानी थी।
सिंहनी बनकर लड़की अकेली वह शक्ति स्वाभिमानी थी।।
कर दिया जिसने तन-मन अर्पण मातृभूमि के चरणों में।
कभी झुकी ना वो मर्दानी झांसी वाली रानी थी।।
पलक यादव 'प्रेरणा
आजा़द हिन्द का सपना लेकर निकल पड़ा बेबाक़ था।
नहीं बुने थे मोह के धागे हर भय से आजाद था।।
कोड़े खाकर भी झुका वीर ना जो दुश्मन के कदमों में।
वंदे मातरम् गाने वाला चंद्रशेखर आजा़द था।।
पलक यादव 'प्रेरणा'
संजोती है जो घर को एक नया आकार देती है।
लुटाती है जो ममता, स्नेह सबको प्यार देती है।।
चलाती है जो कुल को नित समर्पण, त्याग,तप करके।
उस कन्या को दुनिया भ्रूण में ही मार देती है।।
पलक यादव 'प्रेरणा'
जो तत्क्षण मोहल्ले अली को मधुर मकरंद होता है।
खुल जाता है पट दूजा यदि एक बंद होताहै।।
अंधेरे से जो लड़ करके जगत को नई दिशा देदे।
वो अद्भुत स्त्रोत प्रेरणा का विवेकानंद होता है।।
पलक यादव 'प्रेरणा'
Continue with Social Accounts
Facebook Googleor already have account Login Here