कागज के फूल
जिंदगी गुरुदत साहब के
कागज़ के फूल की तरह ही तो है।
समझने में देर लगी,
खैर सच्चाई खुले आंखों से दिखती कहा है हमे!
हम तो तेज रफ्तार , चमकीले समाज के कल्पना को ही सच मानते है।।
जिसमे अंधेरे की कोई जगह नहीं।
मैने उस रोज झांका तो लगा ,
झूठे सच को सच मान कर जी रहा हूं
झूठी रोशनी को सच मान कर अंधेरे में खुद को ही पी रहा हूं।।
खुद की सच्चाई जब हाथ लगी ,
खुद की परछाई जब खुद से दूर जान पड़ी।।
तो समझ आया फूल तो कागज़ के ही थे
बस खूबसूरत लगे तो उन्हें सच मान आगे बढ़ चले हम!
©Ahsas Alfazo ke
kaagaz ke fool
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