नदियों के पानी को पीकर, पत्थर उगल रही है धरती
क्या हो गई है बंजर धरती।
इंसानों ने घोपे धरती में प्रदूषण के खंजर
क्या अब इंसानों में घोपेगी खंजर धरती।।
सजाए थे हम इंसानों ने जीने के सपने
सुना है उम्र के लिहाज से है पल भर धरती।
न जाने क्या क्या हश्र किया इस धरती मां का हमने
अब हमारे विनाश के लिए है तत्पर धरती।।
बड़े बड़े शिलाओ जैसे थे हमारे सपने जीवन के
क्या उन सपनों को करेगी कंकर धरती।
©Rohit Pepawat
#Anhoni