जिसे कठिनाइयां बदल ना सकी जमाना क्या बदलेगा सोया | हिंदी शायरी

"जिसे कठिनाइयां बदल ना सकी जमाना क्या बदलेगा सोया है खुले आकाश तले सर्द रातों में वो ठिकाना क्या बदलेगा नापी है तपती दोपहर में नंगें पांव मीलों दूरी वो पैमाना क्या बदलेगा समय का शिकार खुद शिकरी बन गया तो निशाना क्या बदलेगा अड़ लेगा जिगरबाज़ बादशाह से भी बादशाह उससे क्या लूटेगा फितरत के लिबास से आखरी सांस तक देह का साथ ना छूटेगा बबली भाटी बैसला ©Babli BhatiBaisla"

 जिसे कठिनाइयां बदल ना सकी जमाना क्या बदलेगा 
सोया है खुले आकाश तले सर्द रातों में वो ठिकाना क्या बदलेगा 

नापी है तपती दोपहर में नंगें पांव मीलों दूरी वो पैमाना क्या बदलेगा
समय का शिकार खुद  शिकरी बन गया तो निशाना क्या बदलेगा 

अड़ लेगा जिगरबाज़ बादशाह से भी बादशाह उससे क्या लूटेगा
फितरत के लिबास से आखरी सांस तक देह का साथ ना छूटेगा 
बबली भाटी बैसला

©Babli BhatiBaisla

जिसे कठिनाइयां बदल ना सकी जमाना क्या बदलेगा सोया है खुले आकाश तले सर्द रातों में वो ठिकाना क्या बदलेगा नापी है तपती दोपहर में नंगें पांव मीलों दूरी वो पैमाना क्या बदलेगा समय का शिकार खुद शिकरी बन गया तो निशाना क्या बदलेगा अड़ लेगा जिगरबाज़ बादशाह से भी बादशाह उससे क्या लूटेगा फितरत के लिबास से आखरी सांस तक देह का साथ ना छूटेगा बबली भाटी बैसला ©Babli BhatiBaisla

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