Sshhh... जन्म से पहले मेरा घोटा हलक, खुलने से पहले

"Sshhh... जन्म से पहले मेरा घोटा हलक, खुलने से पहले मेरी बन्द हुई पलक, गर्भ में ही कत्ल कर दिया मझको, माँ... एक बार तो मेरी देख लेते झलक।। कोख में पल रही बेटी है, खबर पता लगी घर पर, सब बन बैठे मेरे दुश्मन, खून सवार था सर पर, मूक थी मैं ... हाँ, अब कैसे बोलू है जीना मझको, मार दिया मुझे गर्भ में ही बस इस जमाने से डर कर।। पहला ख़ंजर लगा आँख में बन्द हो गयी थी मेरी दृष्टि, दूसरा ख़ंजर लगा हाथ पर बहने लगी थी खून की वृष्टि, डॉक्टर मत मारो मुझको जोड़ नन्हें हाथो से की विनती, क्या कसूर है मेरा हाँ! क्यों ना देखू मैं ये सृष्टि!! क्यों मारा मझको! हाँ क्या थी मेरी गलती! क्यों इस देश में! मेरी थोड़ी सी भी ना चलती! कब तक मरोगे मझको ऐसे ही बोझ समझ कर ! आयी बात हक की तो, मैं रह जाती हाथो को मलती। क्यों रह जाती मैं हाथों को मलती।। ©Rahul Lohat"

 Sshhh...
जन्म से पहले मेरा घोटा हलक,
खुलने से पहले मेरी बन्द हुई पलक,
गर्भ में ही कत्ल कर दिया मझको,
माँ... एक बार तो मेरी देख लेते झलक।।

कोख में पल रही बेटी है, खबर पता लगी घर पर,
सब बन बैठे मेरे दुश्मन, खून सवार था सर पर,
मूक थी मैं ... हाँ, अब कैसे बोलू है जीना मझको,
मार दिया मुझे गर्भ में ही बस इस जमाने से डर कर।।

पहला ख़ंजर लगा आँख में बन्द हो गयी थी मेरी दृष्टि,
दूसरा ख़ंजर लगा हाथ पर बहने लगी थी खून की वृष्टि,
डॉक्टर मत मारो मुझको जोड़ नन्हें हाथो से की विनती,
क्या कसूर है मेरा हाँ! क्यों ना देखू मैं ये सृष्टि!!

क्यों मारा मझको! हाँ क्या थी मेरी गलती!
क्यों इस देश में! मेरी थोड़ी सी भी ना चलती!
कब तक मरोगे  मझको ऐसे ही बोझ समझ कर !
आयी बात हक की तो, मैं रह जाती हाथो को मलती।
क्यों रह जाती मैं हाथों को मलती।।

©Rahul Lohat

Sshhh... जन्म से पहले मेरा घोटा हलक, खुलने से पहले मेरी बन्द हुई पलक, गर्भ में ही कत्ल कर दिया मझको, माँ... एक बार तो मेरी देख लेते झलक।। कोख में पल रही बेटी है, खबर पता लगी घर पर, सब बन बैठे मेरे दुश्मन, खून सवार था सर पर, मूक थी मैं ... हाँ, अब कैसे बोलू है जीना मझको, मार दिया मुझे गर्भ में ही बस इस जमाने से डर कर।। पहला ख़ंजर लगा आँख में बन्द हो गयी थी मेरी दृष्टि, दूसरा ख़ंजर लगा हाथ पर बहने लगी थी खून की वृष्टि, डॉक्टर मत मारो मुझको जोड़ नन्हें हाथो से की विनती, क्या कसूर है मेरा हाँ! क्यों ना देखू मैं ये सृष्टि!! क्यों मारा मझको! हाँ क्या थी मेरी गलती! क्यों इस देश में! मेरी थोड़ी सी भी ना चलती! कब तक मरोगे मझको ऐसे ही बोझ समझ कर ! आयी बात हक की तो, मैं रह जाती हाथो को मलती। क्यों रह जाती मैं हाथों को मलती।। ©Rahul Lohat

लाड़ली

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