देख दस्तूर ये आंखे मेरी रोती है ,
हो लड़की अकेली, मानवता क्यों खोती है?
आँख से बहा हर अथरु उसका मोती है ,
जो होता दुराचार उस पे तब दुनिया क्यों सोती है।।
क्या अकेले बाहर जाना ही उसकी गलती है ,
इसी सोच को लेके दुनिया यहाँ चलती है ,
कब बदलेगी ये सोच मेरे देश की,
बस ये कमी मुझे हमेशा यहाँ खलती है ।।
देख के कपड़े उसके नियत करो गंदी ,
अगर सोचता है ऐसे छोटे सोच तेरी मंदी,
खुद की बहन पर होती तुझको जलन छोटे ,
क्यों दुसरो की बहन को पटा कर बोले बन्दी ।।
लाखों परिवार बेटी के गम से मरते है ,
हम बने ज़ाहिल बस Candle March करते है
अगर लड़ नहीं सकते हम हक की लड़ाई को,
तो बेटा हम भी खाना नहीं ,बस घास चरते है।।
हवस बुझाने को तूने ये कैसा खेल खेला है!
आज भी कोर्ट में Rape Cases का लगा मेला है ,
छोटे कपड़े , जोरदार हँसी,लड़को से बातें, हाँ!
ऐसे कितने तानो को उस लड़की ने अकेले झेला है ।।
सुन कर चींखें उसकी तेरा फटा ना जहन,
देख कर लहू उसका तूने कैसे किया सहन ,
ऐसे घटिया काम को वो ही देते अंजाम,
जिनको खुदा आज तक दी ना बहन ।।
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©Rahul Lohat
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