White ✍️आज की डायरी✍️ ✍️क्यूँ मुझे शहरी नहीं बना प | हिंदी कविता

"White ✍️आज की डायरी✍️ ✍️क्यूँ मुझे शहरी नहीं बना पा रहे हो✍️ क्यूँ मुझे अपना नहीं बना पा रहे हो , मुझसे दिल्लगी नहीं लगा पा रहे हो , हूँ तो कई सालों से तेरे ही पहलू मैं , क्यूँ मुझे शहरी नहीं बना पा रहे हो ।।(१) आया था गाँव से तो अच्छा लगा था , देखा ये माहौल तो सब सच्चा लगा था , अब वही गली -कूचों से ऊबन हो रही , कमरे से निकलने की इच्छा नहीं हो रही , क्यूँ औरों सा मुझे नहीं बना पा रहे हो ।। क्यूँ मुझे शहरी नहीं बना पा रहे हो ।। (२) माना कि शहर आना हमारी मज़बूरी है , घर-परिवार के लिए पैसा भी ज़रूरी है , इतना भी मशगूल न हो की सब भूल जाओ , न कोई तुम्हें याद करे न तुम याद आओ , मिट्टी से जुड़े दिल को फ्लैट सा बना रहे हो ।। क्यूँ मुझे शहरी नहीं बना पा रहे हो ।। (३) कितनी भी कोशिश हो दूर करना मुश्क़िल है, दिल का जुड़ाव बार -बार होना मुश्क़िल है , जब तक इस रोजी-रोटी का सवाल रहेगा , तब तक ही शहर में रहने का बवाल रहेगा , रोकना मुमकिन नहीं क्यूँ मुझे लुभा रहे हो ।। क्यूँ मुझे शहरी नहीं बना पा रहे हो ।।(४) ✍️ नीरज✍️ ©डॉ राघवेन्द्र"

 White ✍️आज की डायरी✍️
✍️क्यूँ मुझे शहरी नहीं बना पा रहे हो✍️

क्यूँ मुझे अपना नहीं बना पा रहे हो ,
मुझसे दिल्लगी नहीं लगा पा रहे हो ,
हूँ तो कई सालों से तेरे ही पहलू मैं ,
क्यूँ मुझे शहरी नहीं बना पा रहे हो ।।(१)

आया था गाँव से तो अच्छा लगा था ,
देखा ये माहौल तो सब सच्चा लगा था ,
अब वही गली -कूचों से ऊबन हो रही ,
कमरे से निकलने की इच्छा नहीं हो रही ,
क्यूँ औरों सा मुझे नहीं बना पा रहे हो ।।
क्यूँ मुझे शहरी नहीं बना पा रहे हो ।। (२)

 माना कि शहर आना हमारी मज़बूरी है ,
घर-परिवार के लिए पैसा भी ज़रूरी है ,
इतना भी मशगूल न हो की सब भूल जाओ ,
न कोई तुम्हें याद करे न तुम याद आओ ,
मिट्टी से जुड़े दिल को फ्लैट सा बना रहे हो ।।
क्यूँ मुझे शहरी नहीं बना पा रहे हो ।। (३)

कितनी भी कोशिश हो दूर करना मुश्क़िल है,
दिल का जुड़ाव बार -बार होना मुश्क़िल है ,
जब तक इस रोजी-रोटी का सवाल रहेगा ,
तब तक ही शहर में रहने का बवाल रहेगा ,
रोकना मुमकिन नहीं क्यूँ मुझे लुभा रहे हो ।।
क्यूँ मुझे शहरी नहीं बना पा रहे हो ।।(४)

       ✍️ नीरज✍️

©डॉ राघवेन्द्र

White ✍️आज की डायरी✍️ ✍️क्यूँ मुझे शहरी नहीं बना पा रहे हो✍️ क्यूँ मुझे अपना नहीं बना पा रहे हो , मुझसे दिल्लगी नहीं लगा पा रहे हो , हूँ तो कई सालों से तेरे ही पहलू मैं , क्यूँ मुझे शहरी नहीं बना पा रहे हो ।।(१) आया था गाँव से तो अच्छा लगा था , देखा ये माहौल तो सब सच्चा लगा था , अब वही गली -कूचों से ऊबन हो रही , कमरे से निकलने की इच्छा नहीं हो रही , क्यूँ औरों सा मुझे नहीं बना पा रहे हो ।। क्यूँ मुझे शहरी नहीं बना पा रहे हो ।। (२) माना कि शहर आना हमारी मज़बूरी है , घर-परिवार के लिए पैसा भी ज़रूरी है , इतना भी मशगूल न हो की सब भूल जाओ , न कोई तुम्हें याद करे न तुम याद आओ , मिट्टी से जुड़े दिल को फ्लैट सा बना रहे हो ।। क्यूँ मुझे शहरी नहीं बना पा रहे हो ।। (३) कितनी भी कोशिश हो दूर करना मुश्क़िल है, दिल का जुड़ाव बार -बार होना मुश्क़िल है , जब तक इस रोजी-रोटी का सवाल रहेगा , तब तक ही शहर में रहने का बवाल रहेगा , रोकना मुमकिन नहीं क्यूँ मुझे लुभा रहे हो ।। क्यूँ मुझे शहरी नहीं बना पा रहे हो ।।(४) ✍️ नीरज✍️ ©डॉ राघवेन्द्र

#sad_qoute

People who shared love close

More like this

Trending Topic