White कुंठाओं ने राजमहल में, कालिख पोती है। तृष् | हिंदी कविता

"White कुंठाओं ने राजमहल में, कालिख पोती है। तृष्णा अब केसर क्यारी में,विषधर बोती है।। कुर्सी का प्रतिबिंब पकड़ने,दौड़े गिरगिट हैं। शाखाओं में उल्लू लटके, जनता सोती है।। ©Dr Virendra Pratap Singh Bhramar"

 White कुंठाओं  ने  राजमहल में, कालिख पोती है।
तृष्णा अब केसर क्यारी में,विषधर बोती है।।
कुर्सी का  प्रतिबिंब पकड़ने,दौड़े गिरगिट हैं।
शाखाओं में उल्लू  लटके, जनता  सोती है।।

©Dr Virendra Pratap Singh Bhramar

White कुंठाओं ने राजमहल में, कालिख पोती है। तृष्णा अब केसर क्यारी में,विषधर बोती है।। कुर्सी का प्रतिबिंब पकड़ने,दौड़े गिरगिट हैं। शाखाओं में उल्लू लटके, जनता सोती है।। ©Dr Virendra Pratap Singh Bhramar

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