White देकर अन्न समाज को, भूखा रहे किसान। विडम्बन | हिंदी कविता

"White देकर अन्न समाज को, भूखा रहे किसान। विडम्बना ये देश की, देख सभी हैरान।। पेट भरे जिस अन्न से, जग के सब इंसान। देकर सबको दान फिर, रहता दुखी किसान।। उपजाकर जो अन्न को, भरे बैंक का कर्ज।सबका भरना पेट ही, समझे अपना फर्ज।। सूखे का या बाढ़ का , नहिं कोई उपचार। दोनो ही से त्रस्त है, रहे कृषक लाचार।। -निलम ©Nilam Agarwalla"

 White 
देकर अन्न समाज को, भूखा रहे किसान।
 विडम्बना ये देश की, देख सभी हैरान।। 

पेट भरे जिस अन्न से, जग के सब इंसान।
देकर सबको दान फिर, रहता दुखी  किसान।।

उपजाकर जो अन्न को, भरे बैंक का कर्ज।सबका भरना पेट ही, समझे अपना फर्ज।। 

सूखे का या बाढ़ का , नहिं कोई उपचार।
दोनो ही से त्रस्त है, रहे कृषक लाचार।। 

 -निलम

©Nilam Agarwalla

White देकर अन्न समाज को, भूखा रहे किसान। विडम्बना ये देश की, देख सभी हैरान।। पेट भरे जिस अन्न से, जग के सब इंसान। देकर सबको दान फिर, रहता दुखी किसान।। उपजाकर जो अन्न को, भरे बैंक का कर्ज।सबका भरना पेट ही, समझे अपना फर्ज।। सूखे का या बाढ़ का , नहिं कोई उपचार। दोनो ही से त्रस्त है, रहे कृषक लाचार।। -निलम ©Nilam Agarwalla

#किसान

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