White पाश्चात्य के रंग चढ़े इस कदर, भूल रहे अपनी ज | हिंदी कविता

"White पाश्चात्य के रंग चढ़े इस कदर, भूल रहे अपनी जड़ें, अपना सफर। जहाँ थे मंत्र, श्लोक, हमारी पहचान, अब बदल रहा है सबका ही मान। जींस, टी-शर्ट में लिपटी है जवानी, भूल गए धोती, साड़ी की कहानी। फास्ट फूड की थाली में स्वाद नया, पर खो गया मां के हाथों का छौंका हुआ। त्योहार अब बन गए बस एक रीत, कब छूट गई उनमें वो दिल की प्रीत? दिवाली की दियों की जगह ले ली रौशनी ने, होली की खुशबू को बदल दिया केमिकल ने। संस्कार, संस्कार अब बस नाम के, पश्चिमी हवाओं में बहते हैं हम आम के। अंग्रेज़ी में लिपटी हर एक बातचीत, हिंदी और मातृभाषा कहीं खो गई प्रीत। वो भी ज़रूरी है, प्रगति की राह, पर अपनी संस्कृति क्यों छोड़ें ये चाह? पाश्चात्य से सीखें, पर भूलें न अपनी धरोहर, क्योंकि वही है हमारी पहचान का आधार। आओ मिलकर चलें इस नये दौर में, अपनी संस्कृति को रखें हम अपने गौरव में। पश्चिम की चमक में खो न जाएं, अपनी धरोहर को दिल से सजाएं। ©aditi the writer"

 White पाश्चात्य के रंग चढ़े इस कदर,
भूल रहे अपनी जड़ें, अपना सफर।
जहाँ थे मंत्र, श्लोक, हमारी पहचान,
अब बदल रहा है सबका ही मान।

जींस, टी-शर्ट में लिपटी है जवानी,
भूल गए धोती, साड़ी की कहानी।
फास्ट फूड की थाली में स्वाद नया,
पर खो गया मां के हाथों का छौंका हुआ।

त्योहार अब बन गए बस एक रीत,
कब छूट गई उनमें वो दिल की प्रीत?
दिवाली की दियों की जगह ले ली रौशनी ने,
होली की खुशबू को बदल दिया केमिकल ने।

संस्कार, संस्कार अब बस नाम के,
पश्चिमी हवाओं में बहते हैं हम आम के।
अंग्रेज़ी में लिपटी हर एक बातचीत,
हिंदी और मातृभाषा कहीं खो गई प्रीत।

वो भी ज़रूरी है, प्रगति की राह,
पर अपनी संस्कृति क्यों छोड़ें ये चाह?
पाश्चात्य से सीखें, पर भूलें न अपनी धरोहर,
क्योंकि वही है हमारी पहचान का आधार।

आओ मिलकर चलें इस नये दौर में,
अपनी संस्कृति को रखें हम अपने गौरव में।
पश्चिम की चमक में खो न जाएं,
अपनी धरोहर को दिल से सजाएं।

©aditi the writer

White पाश्चात्य के रंग चढ़े इस कदर, भूल रहे अपनी जड़ें, अपना सफर। जहाँ थे मंत्र, श्लोक, हमारी पहचान, अब बदल रहा है सबका ही मान। जींस, टी-शर्ट में लिपटी है जवानी, भूल गए धोती, साड़ी की कहानी। फास्ट फूड की थाली में स्वाद नया, पर खो गया मां के हाथों का छौंका हुआ। त्योहार अब बन गए बस एक रीत, कब छूट गई उनमें वो दिल की प्रीत? दिवाली की दियों की जगह ले ली रौशनी ने, होली की खुशबू को बदल दिया केमिकल ने। संस्कार, संस्कार अब बस नाम के, पश्चिमी हवाओं में बहते हैं हम आम के। अंग्रेज़ी में लिपटी हर एक बातचीत, हिंदी और मातृभाषा कहीं खो गई प्रीत। वो भी ज़रूरी है, प्रगति की राह, पर अपनी संस्कृति क्यों छोड़ें ये चाह? पाश्चात्य से सीखें, पर भूलें न अपनी धरोहर, क्योंकि वही है हमारी पहचान का आधार। आओ मिलकर चलें इस नये दौर में, अपनी संस्कृति को रखें हम अपने गौरव में। पश्चिम की चमक में खो न जाएं, अपनी धरोहर को दिल से सजाएं। ©aditi the writer

#sanskriti @Niaz (Harf) @vineetapanchal आगाज़ @shraddha.meera @Da "Divya Tyagi"

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