अक्सर जागे तू रातों को
मुझसे बात करने को
मैं अनाडी अपनी ही दुनियाँ में
खोई रहूँ उलझे धागे सुलझाने को
तू माँगें मुझसे खुशी मेरी
मैं गम में रातें बिताती रहूँ
तू करे हसरत मेरी चाहत की
मैं गम-ए-उल्फत बताती रहूँ
तू बुने सपने मुझे अपना बनाने के
मैं इंतजार की घड़ियां गिनाती रहूँ
तू चाहे मुझे अपनी अर्धांगनी कहना
मैं सब्र का धीरज बंधाती रहूँ
मैं सब्र का धीरज बंधाती रहूँ।।
©Priya Singh
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