White जब छा जाती है तन्हाई, भयभीत करती है ख़ुद की | हिंदी Poetry

"White जब छा जाती है तन्हाई, भयभीत करती है ख़ुद की परछाई..! क्रोध का सैलाब ढहा देता है धैर्य, घर कर लेती है मन में बुराई..! कहते हैं किसे अकल पे पत्थर पड़ना, होती अपनी ही ख़ूब जग हँसाई..! अपना बना कर छोड़ने वाले, नज़र आते ज़ालिम कसाई..! ज़िन्दगी जुआँ धुआँ धुआँ इस हद तक जलाई..! ख़ुद की अहमियत ख़ुद के नज़रों में घटाई..! ज़हन्नुम मिला चाहतों को जानी, और मौत खड़ी मंद मंद मुस्कुराई..! ©SHIVA KANT(Shayar)"

 White  जब छा जाती है तन्हाई,
भयभीत करती है ख़ुद की परछाई..!

क्रोध का सैलाब ढहा देता है धैर्य,
घर कर लेती है मन में बुराई..!

कहते हैं किसे अकल पे पत्थर पड़ना,
होती अपनी ही ख़ूब जग हँसाई..!

अपना बना कर छोड़ने वाले,
नज़र आते ज़ालिम कसाई..!

ज़िन्दगी जुआँ धुआँ धुआँ इस हद तक जलाई..!
ख़ुद की अहमियत ख़ुद के नज़रों में घटाई..!

ज़हन्नुम मिला चाहतों को जानी,
और मौत खड़ी मंद मंद मुस्कुराई..!

©SHIVA KANT(Shayar)

White जब छा जाती है तन्हाई, भयभीत करती है ख़ुद की परछाई..! क्रोध का सैलाब ढहा देता है धैर्य, घर कर लेती है मन में बुराई..! कहते हैं किसे अकल पे पत्थर पड़ना, होती अपनी ही ख़ूब जग हँसाई..! अपना बना कर छोड़ने वाले, नज़र आते ज़ालिम कसाई..! ज़िन्दगी जुआँ धुआँ धुआँ इस हद तक जलाई..! ख़ुद की अहमियत ख़ुद के नज़रों में घटाई..! ज़हन्नुम मिला चाहतों को जानी, और मौत खड़ी मंद मंद मुस्कुराई..! ©SHIVA KANT(Shayar)

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