White मैंने उससे पूछा क्या मुझ बिन ख़ुश हो तुम
पहले मुस्कुरायी फ़िर धीरे से आवाज़ आयी ठीक हूँ..!
अब इसे क्या समझा जाये,कोई बेहतर बताये
कितना आसान है किसी को छोड़ कर कहना ठीक हूँ..!
क्या अजीब मंज़र है लोग मंज़िल बदल लिये
मैं सफ़र करता रहा इंतज़ार में, कहते मिले ठीक हूँ..!
सच बताये हसीं आ रहीं है ख़ुद पर कहाँ हूँ
कितनी आसानी से कह दिया तपाक से उसने ठीक हूँ..!
यें ठीक,ना ठीक मसअला नहीं है ज़िन्दगी है
कैसे इक़ पल में छोड़कर बदलते है कहते है ठीक हूँ..!
आख़िर आज वादों की बुनियाद कुछ भी नहीं
जिसको समझ में नहीं आया अभी भी यहाँ की ठीक हूँ..!
ख़ुद को सम्भालो अब सल्तनत फिसल गयीं
तुम बादशाह बने फ़िरते रहें,वो तुम्हारे नहीं कहें ठीक हूँ..!!
©Shreyansh Gaurav
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