गुज़रा हुआ वक्त अब किस दौर से आयेगा,
गुज़रा हुआ साथी अब किस ओर से आयेगा।
बिछड़े कारवां जिंदगी से लौटने की उम्मीद है,
मुकरा हुआ शख़्स अब किस ओर आयेगा।
वाजिब है मुझे छोड़कर उसका जाना भी,
रास्ते बहुत हैं, जाने कौन किस मंज़िल को जायेगा।
जुदाई बहुत हो चुकी, अब उसको पाने की उम्मीद है,
तलाश में जंगल अब किस शहर को जायेगा।
अकेला सफ़र किस मंज़िल तक जायेगा,
दिल की बेचैनी अब किससे सुकून पायेगा।
यादों के नक्शे पर कदमों के कई निशान हैं,
खुद को खोकर शायद कोई राज़ पायेगा।
©theABHAYSINGH_BIPIN
गुज़रा हुआ वक्त अब किस दौर से आयेगा,
गुज़रा हुआ साथी अब किस ओर से आयेगा।
बिछड़े कारवां जिंदगी से लौटने की उम्मीद है,
मुकरा हुआ शख़्स अब किस ओर आयेगा।
वाजिब है मुझे छोड़कर उसका जाना भी,
रास्ते बहुत हैं, जाने कौन किस मंज़िल को जायेगा।