कभी बिना कविता के,
प्रेम का इजहार क्यूं नहीं करते?
क्या हर भाव को,
कविता में पिरोना जरूरी है ?
हां जरूरी है,
क्यूंकि यही मेरे भावों का,
शुद्धतम रूप है।
जहां प्रेम न हो,
वहां कविता कैसे हो सकती है।
दोनों एक सिक्के के,
दो पहलू हैं।
फिर से माफ करना,
गूंथे हुए शब्दों को,
कहने के लिये,
आदत से मजबूर हूं।
तुम्हारे लिए सिर्फ,
कविता ही आती है जहन में,
शुद्धतम रूप,
मेरे जीवन का।
©Nishchhal Neer
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