White ज़िंदगी को उसूलों में बांधते बांधते ना जाने कब हम ख़ुद जंजीरों में बंध गए
होश जब आया तो पिंजरे में बंद मैना की तरह पंख फड़फड़ा कर रह गए
रेत सी फिसली वक्त कब और कैसे एक बंजर रेगिस्तान के जैसे हो गए
काश और आस की कश्मकश में सारे सपने जैसे आग में झुलस से गए
अपनों की दुनियां सजाते सजाते हम ख़ुद कब बदरंग में तब्दील हो गए
बीता वक्त मुझ पर जैसे आईने में सामने आकर मुझ पर हंसने से लग गए
बुझी राख में चिंगारी छिपी है,इसे ना छेड़ना ,अगर आग सुलग गए
मरना बहुत आसान सा लगेगा ज़िंदगी जीनी कहीं भारी ना पड़ जाएं
©Sadhna Sarkar
#ankahe_jazbat
बस यूं ही बिखरे बिखरे ख्यालात