#MessageOfTheDay मैं जानता हूं अपनी खामियां मासूम | हिंदी Poetry

"#MessageOfTheDay मैं जानता हूं अपनी खामियां मासूम दिल होने के कई हानियां एक तो मर्द, उपर से संघर्षरत जिंदगी में बढ़नी ही है परेशानियां ये अल्प उम्र की अज्ञानियां दे रही असंख्य जख्मों के निशानियां हारकर बिखरे नहीं अब तलक, भले दर्दों से लिखी गई मेरी कहानियां युवा मन और बेरहम सपने एक एक कर रूठता अपने जलता मस्तिष्क पूछता हमसे किस जन्म का सजा पाया तुमने जानता हूं मुश्किल है मंजिल का सफर राहों को फिर भी गले लगाया हमने महंगी तो होनी ही थी काटों से दुश्मनी फूलों का बाग फिर भी सजाया हमने शहर के चारदीवारी में कैद होकर एक उम्र जेल सा बिताया हमने ©Rajesh Yadav"

 #MessageOfTheDay मैं जानता हूं अपनी खामियां 
मासूम दिल होने के कई हानियां 
एक तो मर्द, उपर से संघर्षरत
जिंदगी में बढ़नी ही है परेशानियां

ये अल्प उम्र की अज्ञानियां
दे रही असंख्य जख्मों के निशानियां
हारकर बिखरे नहीं अब तलक, भले
दर्दों से लिखी गई मेरी कहानियां

युवा मन और बेरहम सपने
एक एक कर रूठता अपने
जलता मस्तिष्क पूछता हमसे
किस जन्म का सजा पाया तुमने

जानता हूं मुश्किल है मंजिल का सफर
राहों को फिर भी गले लगाया हमने
महंगी तो होनी ही थी काटों से दुश्मनी
फूलों का बाग फिर भी सजाया हमने 
शहर के चारदीवारी में कैद होकर
एक उम्र जेल सा बिताया हमने

©Rajesh Yadav

#MessageOfTheDay मैं जानता हूं अपनी खामियां मासूम दिल होने के कई हानियां एक तो मर्द, उपर से संघर्षरत जिंदगी में बढ़नी ही है परेशानियां ये अल्प उम्र की अज्ञानियां दे रही असंख्य जख्मों के निशानियां हारकर बिखरे नहीं अब तलक, भले दर्दों से लिखी गई मेरी कहानियां युवा मन और बेरहम सपने एक एक कर रूठता अपने जलता मस्तिष्क पूछता हमसे किस जन्म का सजा पाया तुमने जानता हूं मुश्किल है मंजिल का सफर राहों को फिर भी गले लगाया हमने महंगी तो होनी ही थी काटों से दुश्मनी फूलों का बाग फिर भी सजाया हमने शहर के चारदीवारी में कैद होकर एक उम्र जेल सा बिताया हमने ©Rajesh Yadav

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