"तेरी कैद से मेरा रू
रिहा हो नहीं रहा
मेरि जिन्दगी
तेरी हक अदा ना हो रहा
ये मौसम से गिला फिजूल है
अगर छूकर भि तूझे हरा हो ना रहा
तेरे जिते जागते मेरे दिल पे कोइ और है
ये दोस्त तू बता
बहुत बूरा हो नहीं रहा ?
चिन्मय मिश्र"
तेरी कैद से मेरा रू
रिहा हो नहीं रहा
मेरि जिन्दगी
तेरी हक अदा ना हो रहा
ये मौसम से गिला फिजूल है
अगर छूकर भि तूझे हरा हो ना रहा
तेरे जिते जागते मेरे दिल पे कोइ और है
ये दोस्त तू बता
बहुत बूरा हो नहीं रहा ?
चिन्मय मिश्र