Goodbye Winter
फरवरी की जाती हुई सर्दी मे वो कंबल बिस्तर पर बिछी गर्म चादर को अपने आलिंगन में लिए पसरा है ।
वो हॉट वाटर बॉटल जिसे बच्चों की तरह दोनों लिए फिरते थे अपनी गोद में न जाने अलमारी के किसी कोने में गत्ते के डब्बे में वापस कैद हो गई ।
वो मोजे जो जूते के पिंजरों से निकल अकसर बिस्तर पे खेलने आ जाया करते थे , अब दिखाई नहीं देते ।
दिन रात चादर से चिपटे रहने वाले कंबल को अब अक्सर समेट के एक कोने में सीमित कर दिया जाता है ।
वो वक्त दूर नहीं जब वो बंद होगा दीवान के किसी कोने में जैसे कोई जिन्न कैद होता है चराग में ।
हर जाता हुआ सर्दी का दिन उसे अपने अस्तित्व के अंत की तरफ धकेलता है , और इंतजार कराता है उस भयावह मंजर का जब उसे काल कोठरी में कैद किया जाएगा।
मगर लौटेगा किसी रोज , नवंबर के महीने में , बारिश के बाद धीमी धीमी धूप की किरणे चूम के उठाएंगी उसे की उसका दौर लौट आया है ।
©Pratyush Saxena
GoodBye Winter
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