पहली बार ज़ब नज़र से, नज़र टकराई थी,
उस रात आँखों में,कमबख्त नींद कहाँ आई थी,
चल निकला था मुसलसल, मुलाकातों का दौर,
इश्क़ हीं इश्क़ नज़र आता था , तब चहूँ ओर,
क्या पता था कि हमारा ये रिश्ता इतना गहरा होगा,
ख़ुशी का हर लम्हा इन अहसासो में ठहरा होगा,
सबकी रज़ामंदी से, तब हमने सात फेरे लिए थे,
सात वचनो के रूप में, अनगिनत वादे किये थे,
उन वचनो और वादों को, बड़ी शिद्द्त से निभाया था,
मोहब्बत से बँधा रिश्ता हमारा, और भी गहराया था,
उम्र का एक दौर निकल गया,मोहब्बत आज भी जवाँ हैं,
वो ही मोहब्बत, वो ही इश्क़, ख़ू में आज भी रवाँ हैं।।
-पूनम आत्रेय
©poonam atrey
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