यूं न गुमसुम रहो, मुस्कुराया करो
अपनी आंखों में काजल लगाया करो
सादगी में लगती हो तुम मुझे परियों सी ही
यूं पहनकर साड़ी कहर ना मचाया करो
लाली बाली और बिंदिया सभी ठीक हैं
यूं ना आंचल को अपने उड़ाया करो
चूम लेता है बरबस ही गालों के तेरे
अपने झुमके को जरा तुम डराया करो
बोल दो अब बसंती हवा को भी तुम
यूं ना जुल्फों को उसके संग उड़ाया करो
यूं तो ना मिलने के है लाखों बहाने मगर
पर फुरसत से रूबरू भी कभी आया करो
अंकुर तिवारी
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©Ankur tiwari
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