White मेरे पापा फिजाओं में जब तुम ह | हिंदी Poetry

"White मेरे पापा फिजाओं में जब तुम हार रहे होते हो, तब अनवरत संघर्ष की एक बानगी दिखाई देती हैं। न जाने कितने ग़मो को वो अंदर समेटे हुए, फिर भी सामने मेरे चेहरे पर सिर्फ हंसी दिखाई देती है।। हां! रूंध जाता होगा मन भी उनका, थक जाता होगा तन भी उनका, जिम्मेदारियों के बोझ तले, उनको पसीने में भी घर की खुशबू दिखाई देती है। पता है मुझे, आखिर क्यों सिर्फ दो रोटी, और उनका भूख मिट जाता है। आज सोता हू मैं गद्दों पर, और वहां कोई कांटो पर क्यों सो जाता है ? दो पग कैसे बढ़े हम... वो पैदल ही न जाने कितनी दूरी तय कर जाता है।। और हम, कुछ मोल समझते नहीं, ठोकरों से संभलते नहीं, केवल अपनी ही आजमाइश में, उनकी सुनते भी नहीं।।🥺🥺 ©Saurav life"

 White               मेरे पापा

फिजाओं में जब तुम हार रहे होते हो,
तब अनवरत संघर्ष की एक बानगी दिखाई देती हैं।
न जाने कितने ग़मो को वो अंदर समेटे हुए,
फिर भी सामने मेरे चेहरे पर सिर्फ हंसी दिखाई देती है।।
हां! रूंध जाता होगा मन भी उनका,
थक जाता होगा तन भी उनका,
जिम्मेदारियों के बोझ तले,
उनको पसीने में भी घर की खुशबू दिखाई देती है।
पता है मुझे,
आखिर क्यों सिर्फ दो रोटी, 
और उनका भूख मिट जाता है।
आज सोता हू मैं गद्दों पर,
और वहां कोई कांटो पर क्यों सो जाता है ?
दो पग कैसे बढ़े हम...
वो पैदल ही न जाने कितनी दूरी तय कर जाता है।।

और हम,
कुछ मोल समझते नहीं,
ठोकरों से संभलते नहीं,
केवल अपनी ही आजमाइश में,
उनकी सुनते भी नहीं।।🥺🥺

©Saurav life

White मेरे पापा फिजाओं में जब तुम हार रहे होते हो, तब अनवरत संघर्ष की एक बानगी दिखाई देती हैं। न जाने कितने ग़मो को वो अंदर समेटे हुए, फिर भी सामने मेरे चेहरे पर सिर्फ हंसी दिखाई देती है।। हां! रूंध जाता होगा मन भी उनका, थक जाता होगा तन भी उनका, जिम्मेदारियों के बोझ तले, उनको पसीने में भी घर की खुशबू दिखाई देती है। पता है मुझे, आखिर क्यों सिर्फ दो रोटी, और उनका भूख मिट जाता है। आज सोता हू मैं गद्दों पर, और वहां कोई कांटो पर क्यों सो जाता है ? दो पग कैसे बढ़े हम... वो पैदल ही न जाने कितनी दूरी तय कर जाता है।। और हम, कुछ मोल समझते नहीं, ठोकरों से संभलते नहीं, केवल अपनी ही आजमाइश में, उनकी सुनते भी नहीं।।🥺🥺 ©Saurav life

#fathers_day
#sauravlife

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