उस ठहराव में सुकून बहुत था....पर निरंतरता नही थी.. | हिंदी शायरी

"उस ठहराव में सुकून बहुत था....पर निरंतरता नही थी...सब कुछ रुका रुका सा था..... और मैने निरंतरता को चुना ....जो की आसान नहीं था .....क्यों कि मैं तो हवा हूं ना कभी रुका हूं ना कभी रुकूंगा।। ©Dr.Gajendra kumar yadav"

 उस ठहराव में सुकून बहुत था....पर निरंतरता नही थी...सब कुछ रुका रुका सा था..... और मैने निरंतरता को चुना ....जो की आसान नहीं था .....क्यों कि मैं तो हवा हूं ना कभी रुका हूं ना कभी रुकूंगा।।

©Dr.Gajendra kumar yadav

उस ठहराव में सुकून बहुत था....पर निरंतरता नही थी...सब कुछ रुका रुका सा था..... और मैने निरंतरता को चुना ....जो की आसान नहीं था .....क्यों कि मैं तो हवा हूं ना कभी रुका हूं ना कभी रुकूंगा।। ©Dr.Gajendra kumar yadav

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