नहीं भूल पाते तेरी खुली आँखो का दर्द अस्पताल में म

"नहीं भूल पाते तेरी खुली आँखो का दर्द अस्पताल में मशीनों से घिरा तेरा बदन चेहरे पे उमड़ती बिछुड़ने की पीड़ा हम सबकी उम्मीद ने दामन छोड़ा जीवन की डोर पल-पल टूटती थी साँस तेरे तन से नाता तोड़ती थी नहीं भूलता है आँखों से वो मंजर किस्मत ने जड़ा मेरी पीठ में वो खंजर अभी-भी यह एहसास है तुम यहीं हो नहीं भूल पाते हम तेरा मुस्कुराना वो पीछे से आकर सिर पर चपत लगाना राखी के पर्व सबसे पहले राखी बंधवाना पैर छूने के बहाने धीरे-से नोंच जाना तिरछी हँसी, चेहरे का भोलापन मेरी नाराज़गी को मिटा देता पल में सोचती जब भी मैं अकेली होकर किस बात की सजा मिली तुम्हें खोकर त्यौहार पर अब नहीं रहा फोन का इंतजार घंटी बजते ही आता मन में तेरा ख्याल फोन नंबर, फेसबुक पर अब भी जुड़े हो पर असलियत में पहुँच से दूर हो कैसे जी रही हूँ यह मैं जानती हूँ इस कटु सत्य को नहीं स्वीकार पाती हूँ"

 नहीं भूल पाते तेरी खुली आँखो का दर्द
अस्पताल में मशीनों से घिरा तेरा बदन
चेहरे पे उमड़ती बिछुड़ने की पीड़ा
हम सबकी उम्मीद ने दामन छोड़ा
जीवन की डोर पल-पल टूटती थी
साँस तेरे तन से नाता तोड़ती थी
नहीं भूलता है आँखों से वो मंजर
किस्मत ने जड़ा मेरी पीठ में वो खंजर
अभी-भी यह एहसास है तुम यहीं हो
नहीं भूल पाते हम तेरा मुस्कुराना
वो पीछे से आकर सिर पर चपत लगाना
राखी के पर्व सबसे पहले राखी बंधवाना
पैर छूने के बहाने धीरे-से नोंच जाना
तिरछी हँसी, चेहरे का भोलापन
मेरी नाराज़गी को मिटा देता पल में
सोचती जब भी मैं अकेली होकर
किस बात की सजा मिली तुम्हें खोकर
त्यौहार पर अब नहीं रहा फोन का इंतजार
घंटी बजते ही आता मन में तेरा ख्याल
फोन नंबर, फेसबुक पर अब भी जुड़े हो
पर असलियत में पहुँच से दूर हो
कैसे जी रही हूँ यह मैं जानती हूँ
इस कटु सत्य को नहीं स्वीकार पाती हूँ

नहीं भूल पाते तेरी खुली आँखो का दर्द अस्पताल में मशीनों से घिरा तेरा बदन चेहरे पे उमड़ती बिछुड़ने की पीड़ा हम सबकी उम्मीद ने दामन छोड़ा जीवन की डोर पल-पल टूटती थी साँस तेरे तन से नाता तोड़ती थी नहीं भूलता है आँखों से वो मंजर किस्मत ने जड़ा मेरी पीठ में वो खंजर अभी-भी यह एहसास है तुम यहीं हो नहीं भूल पाते हम तेरा मुस्कुराना वो पीछे से आकर सिर पर चपत लगाना राखी के पर्व सबसे पहले राखी बंधवाना पैर छूने के बहाने धीरे-से नोंच जाना तिरछी हँसी, चेहरे का भोलापन मेरी नाराज़गी को मिटा देता पल में सोचती जब भी मैं अकेली होकर किस बात की सजा मिली तुम्हें खोकर त्यौहार पर अब नहीं रहा फोन का इंतजार घंटी बजते ही आता मन में तेरा ख्याल फोन नंबर, फेसबुक पर अब भी जुड़े हो पर असलियत में पहुँच से दूर हो कैसे जी रही हूँ यह मैं जानती हूँ इस कटु सत्य को नहीं स्वीकार पाती हूँ

#तेरा#मुस्कुराना

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