हम और हमारे कमरे
आजकल कमरों की हकीकत बदल गई है। पहले हमारे घरों में कमरे होते थे, अब तो कमरों में हीं घर सिमट गया है।
पहले कमरे सिर्फ सोने, आराम करने और निजी भावनाओ को व्यक्त करने के लिए होते थे परंतु अब कमरे में हीं खाना, पीना, टीवी, व्यायाम, सब हो जाते हैं। बच्चे कमरों में बंद रहते हैं, अपनी व्यक्तिगत आजादी के नाम पर। नौकरियां और व्यापार भी कमरों से हीं चलने लगे हैं। सबसे मजे की बात तो ये है की अब सरकारें भी संसद की बजाय होटल के कमरों में हीं बन जाती हैं।
शानदार भविष्य खुले आसमान में बनता है। बंद कमरे गुलामी की पहचान हैं। जरूरत है हम सब संभल जाएं और अपने कमरों से बाहर निकलें।
©Aditya Sarswati