a-person-standing-on-a-beach-at-sunset सफ़र
उनको नही थी कोई खबर ,
हम न समझे उम्र भर ,
जिंदगी कटती गयी ,
दिलबरी के नाम पर ।
आधा सच ,आधा अमन,
हमने पाया है यहां,
जिंदगी लुटती रही,
हादसों के नाम पर।
ऐ चाँद ! कुछ तू ही बता ,
कितना चाहा है उसे,
हर रोज ही बिकते रहे ,
कौड़ियों के दाम पर ।
वे बातें वो शौक ए सफ़र,
वो दिल्लगी , आवारगी,
आज यादें बन गयीं ,
महफिलों के जाम पर ।
रचना- यशपाल सिंह बादल
©Yashpal singh gusain badal'
#SunSet सफ़र