White सोचूं छोड़ूं या जाने दूं समझूं बूझूं या उलझ | हिंदी कविता

"White सोचूं छोड़ूं या जाने दूं समझूं बूझूं या उलझा रहूं ज़िंदगी की ये कैसी कशमकश है सब उलझनों का निवारण जानते हुए भी अपनी ही उलझनों में फंसे हुआ हूं। ©Sarita Kumari Ravidas"

 White सोचूं छोड़ूं या जाने दूं 
समझूं बूझूं या उलझा रहूं 
ज़िंदगी की ये कैसी कशमकश है 
सब उलझनों का निवारण जानते हुए भी
अपनी ही उलझनों में फंसे हुआ हूं।

©Sarita Kumari Ravidas

White सोचूं छोड़ूं या जाने दूं समझूं बूझूं या उलझा रहूं ज़िंदगी की ये कैसी कशमकश है सब उलझनों का निवारण जानते हुए भी अपनी ही उलझनों में फंसे हुआ हूं। ©Sarita Kumari Ravidas

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